अफगान क्रिकेटर्स पर हमले से टूटा खेल जगत, याद आया श्रीलंकाई टीम पर 2009 का हमला

नई दिल्ली: लाहौर की गलियों में एक बार फिर डर और दर्द की गूंज सुनाई दी है। पाकिस्तान के हालिया एयरस्ट्राइक में तीन अफगान क्रिकेटरों की मौत ने पूरे खेल जगत को झकझोर कर रख दिया है। आईसीसी से लेकर बीसीसीआई तक सभी ने इन खिलाड़ियों के प्रति गहरी संवेदना जताई है। अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने पाकिस्तान और श्रीलंका के साथ होने वाली ट्राई सीरीज़ से खुद को हटाने का फैसला किया है। टीम के कप्तान राशिद खान ने भी इस फैसले का समर्थन करते हुए पाकिस्तान सुपर लीग (PSL) का बहिष्कार कर दिया है। उन्होंने अपने X अकाउंट से PSL टीम का नाम हटाकर साफ संदेश दे दिया कि खेल से बड़ा इंसानियत है।

ये पहली बार नहीं है जब क्रिकेट जगत ने ऐसे दर्दनाक पल देखे हों। साल 2009 में श्रीलंकाई टीम पर पाकिस्तान में हुआ हमला आज भी क्रिकेट इतिहास का सबसे काला दिन माना जाता है। लाहौर के गद्दाफी स्टेडियम जा रही बस पर नकाबपोश आतंकवादियों ने गोलियां बरसा दी थीं। उस वक्त कप्तान महेला जयवर्धने, उपकप्तान कुमार संगकारा, अजंता मेंडिस, थिलन समरवीरा और थरंगा परवितरणा को चोटें आई थीं। इस हमले में छह सुरक्षाकर्मी और दो नागरिकों की जान चली गई थी। टेस्ट मैच रद्द कर दिया गया और श्रीलंका का दौरा तुरंत समाप्त हो गया।

ये घटना इतनी भयावह थी कि इसे 1972 के म्यूनिख ओलंपिक हमले के बाद खिलाड़ियों पर सबसे बड़ा आतंकवादी हमला माना गया। उस दिन दुनिया ने महसूस किया कि खेल अब सुरक्षित नहीं रहा। पाकिस्तान की धरती पर इस तरह के हमले ने क्रिकेट खेलने वाले देशों के मन में गहरी असुरक्षा की भावना छोड़ दी थी।

इससे भी पहले, साल 2002 में कराची में न्यूजीलैंड की टीम आत्मघाती बम विस्फोट की वजह से बाल-बाल बची थी। पर्ल कॉन्टिनेंटल होटल के बाहर हुए धमाके ने दौरे को बीच में ही रद्द करवा दिया। खिलाड़ियों की जान तो बच गई, लेकिन उस हादसे ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को पाकिस्तान से कई सालों तक दूर कर दिया।

अब जब अफगान खिलाड़ियों की मौत की खबर आई है, तो पुराने जख्म फिर हरे हो गए हैं। दुनिया भर के क्रिकेट फैंस सवाल पूछ रहे हैं क्या पाकिस्तान सच में क्रिकेट के लिए सुरक्षित जगह है? क्या अब भी खेल राजनीति और हिंसा से ऊपर उठ पाएगा?

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