सुभाष राज, स्वतंत्र पत्रकार, 27 अप्रैल 2025: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित करके पाकिस्तान को सीधी चेतावनी दी है। सिंधु जल संधि 1960 में हुई थी और दो युद्धों के बावजूद बरकरार रही। इसी वजह से इसे पूरी दुनिया में सीमापार जल प्रबंधन का एक मजबूत उदाहरण माना जाता था। लेकिन अब, पाकिस्तान पर चरमपंथ को समर्थन देने के आरोपों के बीच भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित करके साफ कर दिया है कि पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते। जबकि पाकिस्तान ने इसे युद्ध की कार्रवाई बताकर जवाबी कदम उठाने की चेतावनी दी है।
दोनों देशों के बीच पहलगाम हमले के बाद उत्पन्न तनाव के बीच सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या भारत वास्तव में सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों झेलम व चिनाब के पानी को पाकिस्तान की ओर बहने से रोक सकता है और क्या ऐसा करना संभव है?
जहां तक संधि के प्रावधानों का सवाल है तो सिंधु बेसिन की तीन पूर्वी नदियां—रावी, ब्यास और सतलज का पानी भारत को आवंटित हैं, जबकि तीन पश्चिमी नदियां—सिंधु, झेलम और चिनाब—का 80 प्रतिशत हिस्सा पाकिस्तान को मिलता है। पाकिस्तान की 80 प्रतिशत से अधिक कृषि और एक तिहाई जलविद्युत उत्पादन इसी जल पर निर्भर है। दोनों देशों के बीच पहले भी विवाद रहे हैं। लेकिन ये भारत की जलविद्युत और जल बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर आपत्ति जताने तक सीमित थे। ये पहली बार है कि जल संधि को निलंबित करने जैसा कदम उठाया गया है। क्या भारत नदियों के प्रवाह को प्रभावित कर संधि का उल्लंघन कर रहा है।
जहां तक भारत के आधिकारिक रुख का सवाल है तो वह जलवायु परिवर्तन, सिंचाई, पेयजल और जलविद्युत की बदलती जरूरतों का हवाला देकर संधि की समीक्षा और संशोधन की मांग करता रहा है। दोनों देशों के बीच विवाद को विश्व बैंक अपनी मध्यस्थता में वर्षों से निपटाने की कोशिश कर रहा है। जहां तक भारत की भौगोलिक स्थिति पर नजर डाला जाए तो ये महादेश इन नदियों के अपर स्ट्रीम पर और पाकिस्तान डाउन स्ट्रीम पर स्थित है। इस वजह से भारत को लाभ की स्थिति में माना जा सकता है।
इसके साथ ही ये प्रश्न यहां समीचीन है कि इस निलंबन का निलंबन का मतलब क्या है? क्या भारत सिंधु नदी का पानी रोक या मोड़ सकता है? अगर व्यावहारिक दृष्टिकोण से देखें तो पश्चिमी नदियों के प्रवाह को पूरी तरह रोकना लगभग असंभव है। इसके लिए बड़े पैमाने पर भंडारण सुविधाएं और पानी मोड़ने वाली नहरों का जाल चाहिए, जो भारत के पास फिलहाल नहीं है।
भारत के मौजूदा बुनियादी ढांचे को देखें तो तीनों नदियों पर उसके जलविद्युत संयंत्र हैं, लेकिन इनके लिए बड़े जल भंडारण की जरूरत नहीं पड़ती। ये संयंत्र बहते पानी की ऊर्जा से टरबाइन घुमाकर बिजली बनाते हैं और पानी को बड़े पैमाने पर नहीं रोकते। इसी वजह से भारत संधि के तहत मिलने वाले 20 प्रतिशत हिस्से का भी पूरा उपयोग नहीं कर पाता है।
हालांकि निलंबन से भारत को बिना पाकिस्तान को सूचित किए मौजूदा ढांचे में बदलाव करने या नए निर्माण की आजादी मिल गई है। लेकिन इलाके की भौगोलिक मुश्किलें और भारत के भीतर परियोजनाओं का विरोध जैसे कारक निर्माण गति को बढ़ाने में सबसे बड़े अवरोधक हैं। शायद यही कारण है कि 2016 के उरी हमले के बाद जल संसाधन मंत्रालय ने सिंधु बेसिन में बांधों और भंडारण परियोजनाओं में तेजी लाने की बात कही थी, लेकिन वह सिर्फ बयान ही रह गया और हालात नौ दिन चले अढ़ाई कोस जैसी स्थिति में हैं।
वैसे भी अगर भारत मौजूदा ढांचे से प्रवाह पर नियंत्रण बढ़ाता है तो पाकिस्तान में गर्मी के मौसम में इसका असर दिख सकता है, क्योंकि इस वक्त पानी की उपलब्धता पहले से कम होती है। संधि के तहत भारत को जलविज्ञानीय डेटा साझा करना जरूरी है, जो बाढ़ पूर्वानुमान, सिंचाई और जलविद्युत योजना के लिए अहम है। मानसून में बाढ़ का खतरा रहता है। अगर पाकिस्तान के दावों को सही माना जाए तो भारत पहले से ही कम डेटा साझा कर रहा था।
इसके अलावा भी एक सवाल उभर रहा है कि क्या तनाव बढ़ने पर ऊपरी देश पानी को हथियार बनाकर ‘वॉटर बम’ में बदल सकता है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा किए जाने पर भारत को पहले खुद बाढ़ का खतरा होगा, क्योंकि उसके बांध पाकिस्तान की सीमा से दूर हैं। हालांकि, यह सुविधा जरुर भारत के पास है कि वह बिना चेतावनी के जलाशयों से गाद बहाकर नीचे की ओर नुकसान पहुंचा सकती है। वैसे भी सिंधु जैसी हिमालयी नदियों में गाद ज्यादा होती है और बांधों में जल्दी जमा हो जाती है। इस गाद को अचानक बहाने से डाउन स्ट्रीम पर स्थित देश को भारी क्षति उठानी पड़ सकती है।
इधर भारत के समक्ष एक और खतरा मुंह बाएं खड़ा है। भारत ब्रह्मपुत्र बेसिन में चीन के नीचे है और सिंधु नदी तिब्बत से निकलती है। हमले के बाद जैसे ही भारत ने ‘खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते’ की चेतावनी दी, उसी समय चीन ने यारलुंग त्सांगपो की एक सहायक नदी रोक दी, जो पूर्वोत्तर भारत में ब्रह्मपुत्र के रूप में जानी जाती है। चीन इसे जलविद्युत परियोजना बता रहा, लेकिन इसे पाकिस्तान की मदद माना जा रहा है। सिंधु जल संधि निलंबन के नजरिए से देखा जाए तो तिब्बत में दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने की चीनी कवायद भारत को फेस सेविंग का मौका उपलब्ध करा रहा है।
