नई दिल्ली: 24 सितंबर 2007, जगह थी साउथ अफ्रीका का जोहानसबर्ग और सामने थे भारत-पाकिस्तान। यह पहला टी20 वर्ल्ड कप फाइनल था और रोमांच ऐसा कि पूरे भारत की धड़कनें थम-सी गई थीं। महेंद्र सिंह धोनी की अगुआई में उतरी युवा भारतीय टीम को कोई चांस नहीं दे रहा था, लेकिन उन्होंने दुनिया को दिखा दिया कि जज्बा और आत्मविश्वास किसी भी बड़ी टीम को मात दे सकता है।
उस समय टीम इंडिया ताजा ही वनडे वर्ल्ड कप की हार से निकली थी। सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ जैसे दिग्गज टी20 से दूर हो चुके थे। ऐसे में कप्तानी सौंपी गई थी धोनी को, और यही फैसले ने भारतीय क्रिकेट का भविष्य बदल दिया। फाइनल में वीरेंद्र सहवाग चोट के कारण बाहर थे और डेब्यू करने आए यूसुफ पठान ने पहली ही गेंद पर छक्का जड़कर माहौल बना दिया।
इस मैच के असली हीरो रहे गौतम गंभीर, जिन्होंने 75 रनों की दमदार पारी खेली। वहीं, रोहित शर्मा ने आखिरी ओवरों में तेज 30 रन जोड़कर भारत को 157 रन तक पहुंचाया। जवाब में पाकिस्तान के खिलाफ आरपी सिंह और इरफान पठान ने शुरुआती झटके दिए। लेकिन मिस्बाह-उल-हक ने एक वक्त मैच को रोमांचक बना दिया और आखिरी ओवर तक खींच ले गए।
धोनी का मास्टरस्ट्रोक आया जब उन्होंने आखिरी ओवर जोगिंदर शर्मा को दिया। मिस्बाह ने एक छक्का लगाकर मैच पलटने की कोशिश की, लेकिन अगली गेंद पर स्कूप शॉट खेल बैठे और श्रीसंत ने आसान सा कैच पकड़कर भारत को 5 रन से ऐतिहासिक जीत दिला दी। भारत ने पाकिस्तान को 152 पर रोकते हुए पहला टी20 विश्व कप अपने नाम किया।
उस दिन भारत ने सिर्फ एक ट्रॉफी नहीं जीती थी, बल्कि नए युग की शुरुआत की थी। धोनी की कप्तानी, युवा खिलाड़ियों का जज्बा और टीम की एकजुटता ने पूरी दुनिया को दिखा दिया कि भारतीय क्रिकेट अब किसी पर निर्भर नहीं, बल्कि खुद अपनी नई पहचान गढ़ चुका है। यही जीत थी जिसने धोनी को ‘कैप्टन कूल’ बनाया और भारतीय क्रिकेट की दिशा हमेशा के लिए बदल दी।