पितृ पक्ष 2025: हर साल भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक चलने वाले पितृ पक्ष को पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए बेहद पवित्र माना जाता है। इस बार पितृ पक्ष 7 सितंबर 2025 से शुरू होकर 21 सितंबर 2025 को सर्वपितृ अमावस्या पर समाप्त होगा। इस दौरान तर्पण और पिंडदान के जरिए लोग अपने पितरों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
गया जी का महत्व
बिहार राज्य का गया तीर्थ विशेष रूप से पिंडदान के लिए प्रसिद्ध है। मान्यता है कि यहां किए गए पिंडदान से 108 कुल और सात पीढ़ियों को मोक्ष प्राप्त होता है। फल्गु नदी के तट पर स्थित गया का उल्लेख कई पुराणों जैसे वायु पुराण, गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण में मिलता है।
कैसे बनी गया मोक्षस्थली
पौराणिक कथा के अनुसार गयासुर नामक असुर ने कठोर तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान मांगा था कि उसका शरीर इतना पवित्र हो जाए कि मात्र दर्शन से ही लोग पापमुक्त हो जाएं। इस वरदान से स्वर्ग और नरक का संतुलन बिगड़ गया। तब भगवान विष्णु ने गयासुर से यज्ञ के लिए उसका शरीर मांगा। यज्ञ पूरा होने के बाद विष्णु ने गयासुर को मोक्ष दिया और आशीर्वाद दिया कि जहां-जहां उसका शरीर होगा, वहां पिंडदान करने से पितरों को मुक्ति मिलेगी। यही कारण है कि गया आज मोक्षस्थली कहलाती है।
माता सीता का पिंडदान
गया से जुड़ी एक प्रमुख कथा में बताया गया है कि माता सीता ने यहां अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान किया था। जब भगवान राम और लक्ष्मण सामग्री लेने गए थे, तभी राजा दशरथ की आत्मा सीता के सामने प्रकट हुई और पिंडदान का आग्रह किया। शुभ समय देखते हुए सीता ने नदी की बालू से पिंड बनाकर पिंडदान किया और फल्गु नदी, गाय, केतकी फूल और वटवृक्ष को साक्षी बनाया।
श्राप का रहस्य
जब राम और लक्ष्मण लौटे तो उन्होंने सीता की बात पर विश्वास नहीं किया। गवाह बुलाने पर फल्गु नदी, गाय और केतकी फूल ने झूठ बोला जबकि वटवृक्ष ने सच बताया। इस पर सीता ने क्रोधित होकर श्राप दिया। उन्होंने फल्गु नदी को जलहीन होने का श्राप दिया, गाय को पवित्र होकर भी जूठन खाने का दंड दिया और केतकी फूल को किसी भी पूजा में निषिद्ध कर दिया। वहीं सच बोलने के लिए वटवृक्ष को उन्होंने दीर्घायु का वरदान दिया।