भारत के स्वतंत्र होने के बाद देश की पहली मुद्रा श्रृंखला 1949 में आई थी, जिसमें 1 रुपये का नोट सबसे पहले जारी हुआ। इसके कुछ वर्षों बाद 1960 में 100 रुपये का नया नोट पेश किया गया। यह नोट उस दौर के आर्थिक बदलाव और विकास का प्रतीक था। रॉयल कॉइन कलेक्टर के एक व्यक्ति ने इंस्टाग्राम पर इस नोट को साझा करते हुए बताया कि उनके पास ऐसे तीन 100 रुपये के नोट मौजूद हैं, जिनका आकार 4 इंच बाय 6 इंच है। यह आकार आज के नोटों से कहीं बड़ा था, जिससे इसे संभालना भी कठिन होता था।
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हीराकुड डेम बना नोट की शान
इस नोट की सबसे बड़ी विशेषता थी उस पर छपी हीराकुड डेम की तस्वीर। यह डेम ओडिशा के महानदी पर बना हुआ है और भारत की इंजीनियरिंग का एक ऐतिहासिक उदाहरण माना जाता है। 1960 के दशक में जारी नोटों पर इस तरह के प्रतीक शामिल किए गए थे ताकि जनता को देश की प्रगति का एहसास हो। हीराकुड डेम न केवल बिजली उत्पादन का स्रोत था बल्कि यह स्वतंत्र भारत की आत्मनिर्भरता और विकासशील सोच का प्रतीक भी था।
नोट पर दिखाई गई भारत की विविधता
इस 100 रुपये के नोट पर देश की भाषाई विविधता को भी प्रमुखता दी गई थी। इसमें भारत की विभिन्न भाषाओं में “रुपये” शब्द अंकित था, जो देश की “एकता में विविधता” के सिद्धांत को दर्शाता था। उस दौर में नोट केवल मुद्रा नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक पहचान और एकता का माध्यम थे।
गांधीजी की तस्वीर नहीं थी इन नोटों पर
आज की भारतीय मुद्रा में महात्मा गांधी की तस्वीर हर नोट पर दिखाई देती है, लेकिन 1950 से 1960 के दशक तक ऐसा नहीं था। उस समय नोटों पर जानवरों, इमारतों, मंदिरों और इंजीनियरिंग के प्रतीक जैसे डेम या सैटेलाइट दर्शाए जाते थे। इन चित्रों का उद्देश्य था देश की तकनीकी प्रगति और सांस्कृतिक विरासत को उजागर करना।
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कलेक्टर्स के लिए ऐतिहासिक धरोहर
आज के समय में यह 100 रुपये का नोट बेहद दुर्लभ और मूल्यवान माना जाता है। ऐसे नोट अब केवल मुद्रा नहीं रहे, बल्कि इतिहास का जीवंत प्रमाण बन चुके हैं। इन्हें देखने से उस दौर के भारत की झलक मिलती है जब देश अपनी पहचान गढ़ने की राह पर था। अगर आपके पास भी ऐसे पुराने नोट हैं तो यह सिर्फ कागज नहीं बल्कि इतिहास का हिस्सा हैं, जिन्हें संभालकर रखना अपने अतीत को सुरक्षित रखना है।