सुभाष राज, स्वतंत्र पत्रकार, नई दिल्ली, 21 जुलाई 2025: चीन ने तिब्बत में दुनिया के सबसे बड़े हाइड्रोपावर बांध को सदी की सबसे बड़ी परियोजना मोटुओ की नींव रखकर भारत के लिए सीधा खतरा उत्पन्न कर दिया है। इसकी अनुमानित लागत 1.2 ट्रिलियन युआन यानी लगभग 167 अरब डॉलर है। भारतीय मुद्रा में करीब 1.44 लाख करोड़ रुपये की यह परियोजना के तहत पांच कासकेड हाइड्रोपावर स्टेशन बनाए जाएंगे। चीन का तर्क है कि इससे कोयले पर निर्भरता घटेगी, हरित ऊर्जा को बढ़ावा मिलेगा और चीन 2060 तक कार्बन न्यूट्रल बनने के लक्ष्य को हासिल कर लेगा।
इस परियोजना का ज़िक्र पहली बार चीन की 14वीं पंचवर्षीय योजना में हुआ था। इस परियोजना से उत्पन्न हालात को देखते हुए भारत ने औपचारिक रूप से चीन से आग्रह किया है कि वह डाउनस्ट्रीम देशों के हितों का ध्यान रखे। बांग्लादेश ने भी चीन को पत्र लिखकर बांध की विस्तृत जानकारी मांगी है। दोनों देशों की चिंता यह है कि नदी का बहाव प्रभावित हुआ तो करोड़ों लोगों की ज़िंदगी पर असर पड़ेगा।
यह बांध अरुणाचल प्रदेश की सीमा से सटे न्यिंगची इलाके में बन रहा है। भारत के नज़रिए से यह बेहद संवेदनशील इलाका है। अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने परियोजना को ‘वॉटर बम’ कहते हुए स्पष्ट किया है कि अगर चीन अचानक पानी छोड़े तो सियांग और ब्रह्मपुत्र घाटी का बड़ा हिस्सा तबाह हो सकता है। इससे आदिवासी समुदायों की ज़मीन, संपत्ति और जीवन पर विनाशकारी असर पड़ सकता है।
मुख्य विपक्षीदल कांग्रेस ने भी इसे लेकर सवाल उठाए हैं और कहा है कि चीन इसके जरिये ब्रह्मपुत्र के बहाव पर नियंत्रण स्थापित कर सकता है। हालांकि असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का मानना है कि चिंता उतनी बड़ी नहीं जितनी दिखाई जा रही है। हिमंत का कहना है कि ब्रह्मपुत्र के प्रवाह का केवल 30-35 प्रतिशत हिस्सा चीन में है, जबकि 65-70 प्रतिशत प्रवाह भारत में होता है। हिमंत का कहना है कि भारत में प्रवेश करने के बाद नदी का फैलाव और जलधारा इतनी बड़ी हो जाती है कि चीन के बांध का असर पूरी तरह विनाशकारी नहीं होगा।
जबकि भारत के लिए परियोजना से जुड़े खतरे केवल पर्यावरणीय नहीं, बल्कि रणनीतिक भी हैं। चीन चाहे तो नदी के प्रवाह को नियंत्रित या मोड़ सकता है। गर्मियों में अगर वह ज़्यादा पानी छोड़ दे तो भारत में बाढ़ की स्थिति बन सकती है। यदि पानी रोका गया तो पूर्वोत्तर भारत में सूखे जैसी समस्या खड़ी भी खड़ी कर सकता है।
दूसरा बड़ा सवाल पर्यावरण का है। तिब्बत की घाटियां जैव विविधता से समृद्ध हैं। वहां की पारिस्थितिकी बेहद नाज़ुक है। बांध बनने से यह सब डूब सकता है। चूंकि ये इलाका भूकंप संभावित ज़ोन में आता है। इस वजह से इतने बड़े बांध की मौजूदगी किसी भी प्राकृतिक आपदा को और घातक बना सकती है।
तिब्बत के लिहाज़ से भी यह परियोजना विवादित है। यह बांध यारलुंग सांगपो नदी के उस मोड़ पर बनाया जा रहा है, जहां यह नामचा बरवा पर्वत के पास एक गहरी घाटी में यू-टर्न लेती है। इसे धरती की सबसे गहरी और लंबी घाटियों में से एक माना जाता है।
चीन की नीति वर्षों से यह रही है कि तिब्बत की घाटियों और नदियों से बिजली उत्पादन कर उसे पूर्वी महानगरों तक पहुंचाया जाए। इसे पश्चिम की बिजली पूरब को कहा जाता है। सरकार का कहना है कि इससे प्रदूषण घटेगा, तिब्बती ग्रामीण इलाकों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी और पूरे देश में स्वच्छ ऊर्जा की आपूर्ति बढ़ेगी।
मगर वास्तविकता में तिब्बतियों को इस प्रक्रिया में अपनी ज़मीन, आजीविका और सांस्कृतिक पहचान से हाथ धोना पड़ सकता है। इसी कारण विरोध प्रदर्शनों को कड़े बल प्रयोग से दबा दिया गया।
भारत ने भी सियांग नदी पर एक हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट बनाने की योजना तैयार की है। इसका उद्देश्य है कि चीन के बांध से अचानक छोड़े गए पानी को रोका जा सके और बाढ़ के खतरे को कम किया जा सके। पर सवाल यह है कि क्या ऐसे उपाय लंबे समय में पर्याप्त होंगे?
जलवायु परिवर्तन और बढ़ती आबादी के दौर में पानी पर नियंत्रण किसी भी देश के लिए रणनीतिक हथियार बन सकता है। चीन पहले ही दक्षिण एशिया की कई नदियों के स्रोत पर स्थित है। यारलुंग सांगपो पर मेगा बांध इस संतुलन को और अधिक असमान बना देगा।
चीनी नेतृत्व इस परियोजना को ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरणीय सुधार की दिशा में मील का पत्थर बता रहा है। मगर भारत और बांग्लादेश के लिए यह केवल बांध नहीं, बल्कि अस्तित्व का सवाल है।
दक्षिण एशिया में जल राजनीति पहले ही संवेदनशील रही है। ऐसे में यारलुंग सांगपो पर यह मेगा बांध आने वाले वर्षों में पूरे क्षेत्र की रणनीतिक स्थिति को बदल सकता है। ऊर्जा उत्पादन और पर्यावरण सुधार का दावा चाहे जितना आकर्षक लगे, हकीकत यह है कि पानी किसी भी देश के लिए जीवनरेखा है। लेकिन ये परियोजना भारत के हितों पर पूरी तरह कुठाराघात के साथ उसके लिए बड़े सैनिक खतरे का भी कारण बन सकता है।
रणनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में कभी दोनों देशों के बीच सैनिक टकराव हुआ तो ये परियोजना फौज के लिए किसी बम से कम साबित नहीं होगी. क्योंकि ब्रह्मपुत्र नदी के चारों ओर भारत की फौजों के महत्वपूर्ण बेस के साथ ही उसके बेहद संवेदनशील हथियारों की तैनाती भी इसी क्षेत्र में है, जिन्हें चीन बांध में पानी छोड़कर डुबो सकता है।
