पहलगाम हमला: जबावी कार्रवाई में तोड़नी होगी पाकिस्तान की कमर

सुभाष राज, स्वतंत्र पत्रकार, 5 मई 2025: पहलगाम हमले के बाद सरकार निवारक कार्रवाई करने में जो वक्त ले रही है वह ​फौजी रणनीति के लिहाज से ठीक है लेकिन सरकार और फौज को ये तय करना होगा कि पाकिस्तान के खिलाफ की जाने वाली सैन्य कार्रवाई का लक्ष्य क्या होगा और उस लक्ष्य को हासिल करने की कीमत क्या होगी!

पिछले 35 वर्षों से जम्मू—कश्मीर में पाकिस्तान की ओर से छेड़े गए छद्म युद्ध का जवाब सीमित सैन्य कार्रवाइयों, गुप्त हमलों, सर्जिकल स्ट्राइक और हवाई हमलों के रूप में दिया जाता रहा है, लेकिन पाकिस्तान पूरी तरह नियंत्रित नहीं किया जा सका और वह आतंकी हमलों की साजिश रचने और हमले करने में हमेशा कामयाब रहा है।

हालांकि, 2016 और 2019 में हुए सर्जिकल स्ट्राइक तथा हवाई हमलों ने पाकिस्तानी हुकूमत को ये संदेश तो दिया कि भारत जवाबी कार्रवाई करने में हिचकेगा नहीं, लेकिन इससे पाकिस्तान काबू में नहीं आया। इसके अलग—अलग कारण हैं लेकिन सबसे बड़ा कारण भारत की कोई औपचारिक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति या प्रतिरक्षा नीति नहीं होना है। सैन्य इतिहास बताता है कि सरकार परंपरागत रूप से ‘रणनीतिक प्रतिरक्षा’ की नीति अपनाती रही है। अर्थात भारत किसी पर आक्रमण नहीं करेगा लेकिन हमला होने पर पूरी मजबूती से जवाब देगा।

अगर भारतीय सेनाओं के इतिहास की बात करें तो 1986 में आर्मी चीफ जनरल कृष्णस्वामी सुंदरजी ने ‘इंडियन आर्मी पर्सपेक्टिव प्लान 2000’ बनाया था। इस प्लान में चीन के खिलाफ ‘निवारक प्रतिरोध’ और पाकिस्तान के खिलाफ ‘आक्रामक प्रतिरोध’ की रणनीति शामिल थी। प्लान के मुताबिक चीन का मुकाबला उच्च ऊंचाई वाले इलाकों में मजबूत रक्षात्मक तैनाती और प्रतिआक्रमण की क्षमता विकसित करनी थी।

इस प्लान में पाकिस्तान के संदर्भ में रणनीति अधिक आक्रामक थी। यानि उसकी अधिकतम भूमि पर कब्जा करके और उसकी सैन्य-आर्थिक क्षमता को नष्ट करके सबक सिखाने की तैयारी रखनी थी। इस योजना की वजह से ही भारतीय सेना के आधुनिकीकरण को गति मिली और नए टैंक ब्रिगेड्स, मिसाइल सिस्टम और स्पेशल फोर्स की भूमिका बढ़ाई गई।

ये तैयारी 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में काम आई जब आगे बढ़ती लाल सेना के खिलाफ कैलास पर्वत शृंखला में आक्रामक तैनाती करके उसे पीछे हटने पर बाध्य किया गया। इस दौरान सेना ने गलवान घाटी जैसे क्षेत्रों में त्वरित प्रतिक्रिया दिखाई, जहां हाथों की लड़ाई और रक्षात्मक पोजीशनिंग ने दुश्मन की प्रगति रोकी।

पाकिस्तान ने 1971 के बाद से कोई सीधा युद्ध नहीं छेड़ा, लेकिन 1989 से वह जम्मू—कश्मीर में छद्म युद्ध लड़ रहा है। इसका प्रमुख हथियार आतंकी संगठन हैं। जनरल सुंदरजी के बाद सेना ने जवाबी कार्रवाई के लिए कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रीन क्षमता विकसित की। सन् 2004 में बनाया गया ये सिद्धांत परंपरागत मोबिलाइजेशन की देरी को दूर करता है।

इसमें इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप्स का उपयोग किया जाता है। ये ग्रुप्स स्वतंत्र रूप से आक्रमण कर सकते हैं। यह रणनीति पाकिस्तानी सेना की न्यूक्लियर थ्रेशोल्ड को ध्यान में रखकर डिजाइन की गई है, ताकि सीमित गहराई तक आक्रमण हो और पूर्ण युद्ध से बचा जा सके। हाल के वर्षों में सेना ने इस डॉक्ट्रीन को और मजबूत करते हुए आर्टिलरी, एयर सपोर्ट और साइबर ऑपरेशंस को एकीकृत किया है।

मौजूदा सैन्य हालात और चुनौतियां

वैसे आज पाकिस्तान सैन्य रूप से चौतरफा दबाव में है। बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में स्थानीय विद्रोह, तालिबान और बलूच संगठनों की कार्रवाइयां उसकी सेना के लिए सिरदर्द हैं। पाकिस्तानी सेना को इन आंतरिक संघर्षों पर संसाधन खर्च करने पड़ रहे हैं, जिससे भारत की सीमा पर उसकी तैनाती कमजोर हुई है। भारत ने भी लश्कर-ए-तैय्यबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों के नेतृत्व को निशाना बनाकर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई पर सीधा दबाव बनाया है। यह दबाव ड्रोन हमलों, इंटेलिजेंस-बेस्ड ऑपरेशंस और स्पेशल फोर्स की कार्रवाइयों के माध्यम से बढ़ाया गया है।

अब बात पहलगाम की। ये हालिया हमला केवल आतंकी कार्रवाई नहीं, बल्कि पाकिस्तान की ओर से सोची-समझी उकसावे की रणनीति है ताकि भारत जल्दबाजी में कदम उठाए और फंस जाए। इसी को देखते हुए पाकिस्तानी सेना ने सीमा पर मिसाइल डिफेंस सिस्टम, एंटी-ड्रोन तकनीक और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर यूनिट्स तैनात की हैं।

भारतीय सेना की वर्तमान क्षमता में राफेल फाइटर जेट्स, एस-400 मिसाइल सिस्टम और स्वदेशी तेजस जैसे हथियार शामिल हैं, जो हवाई श्रेष्ठता प्रदान करते हैं। नौसेना में आईएनएस विक्रांत जैसे एयरक्राफ्ट कैरियर और परमाणु पनडुब्बियां पाकिस्तानी नौसेना का काल बन सकती हैं। वायुसेना की मिराज-2000 और सुखोई-30एमकेआई स्क्वाड्रन्स बालाकोट में अपनी क्षमता सिद्ध कर चुकी हैं। लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान की जेएफ-17 फाइटर जेट्स और चीनी मिसाइलें हमारे लिए चुनौती बन सकती हैं।

इसलिए बेहतर विकल्प ये हो सकता है कि जवाबी कार्रवाई का स्वरूप नियंत्रित युद्ध या दंडात्मक हमलों तक सीमित रखा जाए। यह मिसाइल, ड्रोन, हवाई हमलों या स्पेशल फोर्स की कार्रवाई हो सकती है। लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) पर गोलाबारी और सीमा पार चौकियों पर कब्जा भी एक प्रभावी तरीका हो सकता है।

यद्यपि असली सैन्य बुद्धिमानी यही है कि पाकिस्तान को लंबे समय तक खौफ में रखा जाए। जल्दबाजी में हमला करने से कहीं बेहतर है कि उसे लगातार अनिश्चितता और दबाव में रखा जाए। जब भी जवाब दिया जाए, वह अचानक बिजली गिरने जैसा होना चाहिए—तेज, निर्णायक और ऐसा जिसकी पाकिस्तान ने कल्पना भी न की हो। इसमें इंटेलिजेंस, साइबर ऑपरेशंस और गुप्त कार्रवाई प्रमुख रूप से हो।

कार्रवाई से पाकिस्तान को अहसास होना चाहिए कि भारत उसकी सैन्य क्षमता को कभी भी कुचल सकता है। यही डर पाकिस्तान की सैन्य क्षमता को भीतर तक तोड़ेगा और भारत की रणनीतिक बढ़त बनाए रखेगा। इसके अलावा, भारत को अपनी सैन्य क्षमता को और मजबूत करने पर फोकस करना चाहिए। साइबर कमांड और स्पेस कमांड जैसी नई यूनिट्स को आपरेशन के लिए हर समय तैयार रखना चाहिए। पाकिस्तान की न्यूक्लियर क्षमता को ध्यान में रखते हुए, भारत को अपनी परमाणु क्षमता को भी निरंतर धार देनी चाहिए। पारंपरिक युद्ध में उस पर श्रेष्ठता बनाए रखने को भी प्राथमिकता देनी होगी।

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